शिकायतों के बिना एक समारोह आयोजित करना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में कृषि मेला  जैसा कार्यक्रम को निभाना और भी निभाना किस तरह मुश्किल होगा सोचिये | आरंभिक चरण में दिखाई नहीं दिखाई देनेवाले  समस्याएं व्यावहारिक चरण में दिखाई दे सकती हैं। किस तरह की समस्याएं आसकती है, समस्याओंको कैसे सुधारे? इन सब अंशो पे ध्यान दिया जाय तो, सभी मिलकर एकता से  समन्वय होकर काम निभाए तो एक विशाल मेला सफलता पा सकता है |  बैंगलोर विश्वविद्यालय कृषि मेला-2019 सफलता का एक  नाम है|

छः महीने का पूर्व सिद्धता

मेले में क्या होना चाहिए,  उसका विषय क्या होना चाहिए, मेलेमें क्या शामिल होनचाहिए और किस फसल के बारे में
चर्चा हो  क्या फसलें मौजूद होनी चाहिए ? जैसे अनेक विषयोंके बारे में चिंतन मंथन किया गया था| छह महीने के पहले ही सोचा गया था| और इस आधार पर योजनाएं बनायी गयी थी| विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ। एस राजेंद्र प्रसाद जी का कहना है की इसके लिए विभिन्न समितियां बनाई गईं। विभिन्न कार्यों को करने के लिए कुल सोलह समितियों को जिम्मेदारी दी गई थी |

विभिन्न समितियां

सोलह समितियों का गठन, एक अध्यक्ष, संयोजक के साथ प्रत्येक। साथ ही सदस्य।

‘’1. संचालन समिति, 2. आयोजन समिति, 3. मीडिया समिति, 4. फील्ड प्रदर्शन समिति, 5. पंजीकरण समिति, 6. वस्तु समिति, 7. पशु विज्ञान समिति, 8. कार्मिक स्वागत समिति, 9. सलाहकार समिति, 10 भोजन समिति, 11. यातायात नियंत्रण – वाहन पार्किंग समिति, 12. सुरक्षा – सुरक्षा समिति, 13. सफाई समिति – 14. प्राथमिक चिकित्सा समिति, 15. धन संग्रहण समिति, 16. सांस्कृतिक कार्यक्रम समिति’’

प्रत्येक समिति के अध्यक्ष, संयोजक, सदस्यों की नियुक्ति। प्रत्येक समितियों की समितियों को अलग किया गया और उनकी जिम्मेदारियों के बारे में बताया गया।  यह उल्लेखनीय है कि यह कहीं भी भ्रमित नहीं था

 कुलाधिपति डॉ। एस राजेंद्र प्रसाद के प्रभारी:

‘’चांसलर डॉ। एस राजेंद्र प्रसाद ने सभी समितियों की प्रभारी थे |एक्सटेंशन डायरेक्टर नामित किया गया है। एम् एस नटराज, अनुसंधान निदेशक सहायक थे| व्यापक प्रदर्शनियों के लिए समिति विस्तार  निदेशक थे  जबकि फसल  डेमोंस्ट्रेशन का प्रबंधन| कुल मिलाकर, 200 से अधिक कड़ी मेहनत कर रहे थे। छात्रों को आवश्यक समितियों के लिए परिवहन, पार्किंग और भोजन समितियों का प्रबंधन करने के लिए भी स्वेच्छा से तैयार किया गया था। उन्हें सफेद टी-शर्ट और टोपी दी गई।‘’
कर्नाटक सरकार की सहायता:

एक बड़े मेले  को बनाए रखना याने  बहुत बड़ा खर्च । कर्नाटक सरकार ने भी इस परियोजना को वित्त पोषित किया। व्यापारी भंडार शुल्क लिया गया। उन वस्तुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्मित जिन्हें बारिश से प्रभावित हुए बिना आश्रय में लाया गया था। लोगों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी। एक्सटेंशन के कर्मचारियों का कहना है कि एहतियात बरता गया ताकि कोई दुर्घटना न हो।

विशाल भंडार:

सात सौ से अधिकभण्डार  स्थापित किए गए थे। कृषि क्षेत्र के विभिन्न वर्गों ने अपने संबंधित वर्गों के लिए संबंधित वस्तुओं का प्रदर्शन किया। बिक्री की भी अनुमति थी। मेले को  जीवित बनाने  के लिए ‘गाँव- गल्ली” की  अवधारणा के तहत गैर-कृषि वस्तुओं की विशेष बिक्री मेले में विभिन्न वस्तुओं की बिक्री के लिए एक विशेष अवसर  दिया गया था| बैंगलोर विश्वविद्यालय ने कुछ साल पहले इस अवधारणा को अपनाया था। यह विशेष रूप से महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं जैसे कि व्यंजन दिख पड़े|

कृषि विभाग

‘’कृषि विभाग हार साल के तरह इस साल भी सहयोग दिया| बैंगलोर कृषि विश्वविद्यालय और दावणगेरे जिले के 10 जिलों से इच्छुक किसानों को लाया

गया था| । राज्य सरकार के विकास विभागों ने भी स्टोर खोले  और उन्हें अपने काम से परिचित कराया। राज्य के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों ने भी स्टोर खोले  और अपनी उपलब्धियों का परिचय दी ।‘’

सटीक खेती पर जोर
इन सभी को ध्यान में रखते हुए, “सटीक कृषि – सतत विकास” की अवधारणा को इस समय प्राथमिकता दी गई थी।

पानी और पोषक तत्व तभी प्रदान किए जाते हैं जब फसल की मांग होती है, जैसे कि जब फसलों को माइक्रोप्रोसेसर के उपयोग के माध्यम से सुना जाता है।
इसमें पोषक तत्व प्रदान करने के लिए “रासावरी” मॉडल शामिल है। प्राकृतिक तरल रूप पोषक तत्वों की आपूर्ति भी पानी के साथ की जाती है। इससे खर्च कम होगा, लाभ मार्जिन बढ़ेगा। किसानों ने उत्साहपूर्वक इस मॉडल को देखा और कृषिविदों के साथ इस पर चर्चा की। निकट भविष्य में हर जगह इस मॉडल को अपनाया जाएगा|

 ‘’कुलपति डॉ। राजेंद्रप्रसाद बताते हैं की संसाधन जैसे पानी और पोषक तत्व दुर्लभ होते जा रहे है| एक ही खेत में एक ही  प्रकार की उर्वरता नहीं होती है। सटीक खेती कम प्रजनन क्षमता के लिए अधिक पोषक तत्व प्रदान करती है, अधिक पोषक तत्वों के लिए कम पोषक तत्व।‘’


खेतों की फसल जैसे गन्ना, धान, मक्का और अन्य फसलों के लिए भी ड्रिप सिंचाई लागू की जाती है। कृषि अनुसंधान विभाग के अनुसार, पर्याप्त वृद्धि और उच्च पैदावार प्राप्त करना संभव है।

किसानों ने बैंगलोर कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न फसलों की विविधता, परिष्कार और फसल की सराहना की। यह स्पष्ट था कि महीने पहले कृषि अनुसंधान विभाग की कड़ी मेहनत और निरंतर भागीदारी थी।

मीडिया सहयोग:

मीडिया की भूमिका इतनी शानदार है कि वे मेले  की सभी तारीखों, समारोह और मेले के विशेषताओं पर ज्यादा ध्यान दिए| प्रिंट, टीवी, वेब मीडिया ने सहयोग किया है। हर ख़ास बात को रिपोर्ट किया| मीडिया सहयोग पे यहांके मीडिया को-आर्डिनेटर डॉ शिवराम खुश है|

पोषण आहार:

उपस्थित लोगों  के लिए हर रोज पुष्टिक आहार उपलब्ध था | सब्जी सांबर, अंडा, भात, मुद्दा (रागी बॉल) था| शुचि के साथ रूचि पर ध्यान दिया गया था| आंकड़े बताते हैं कि चार दिनों में भोजन करने वालों की संख्या 32,000 से अधिक है

जोरदार व्यापार :

एक स्टोर-ओपन कंपनी के प्रबंधकों ने सराहना की कि कंपनी ने विभिन्न मशीनों, उपकरणों, पोषक तत्वों आदि से निराश नहीं किया। कहा जाता है कि चार दिनों में यह कारोबार 5 करोड़ और 75 लाख को पार कर गया है।

असीम लोग

पहले दिन 24 अक्टूबर को डेढ़ लाख, 25 तारीख को 25 लाख, 26 को छह लाख, 27 को तीन लाख आए थे।

विस्तार निदेशालय का कहना है कि सभी  के लिए यह देखने और सीखने की सभी व्यवस्था की गई थी।

‘’राज्य में वर्षा आधारित कृषि का क्षेत्र अधिक है। इसे ध्यान में रखते हुए, 62 प्रौद्योगिकियों को विकसित किया गया है।
इसके अलावा, किसानों को उच्च प्रौद्योगिकी प्रदान करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी लागू की जा रही है| फार्म की सफलता के लिए विश्वविद्यालय के सभी संकाय और  कर्मचारी, राज्य सरकार, इसके विभिन्न विभागों, विशेष रूप से कृषि विभाग और पुलिस के सहयोग को राजेंद्र प्रसाद ध्यन्यवाद कहते है|कृषि विश्वविद्यालयों से पुरस्कार प्राप्त करने के लिए 60 वर्ष की आयु में पुरस्कार मिलना चाहिए या नहीं, इसकी एक अलिखित परंपरा है।‘’ गौरतलब है कि इस बार पुरस्कार बुजुर्गों के साथ-साथ उन युवा किसानों को दिया गया जिन्होंने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। इससे कृषि के प्रति अधिक युवाओं को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।

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